Friday, December 15, 2017

कुछ तबियत........

कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी
चैन से जीने की सूरत ना हुई
जिसको चाहा उसे अपना ना सके
जो मिला उससे मुहब्बत ना हुई

जिससे जब तक मिले दिल ही से मिले
दिल जो बदला तो फसाना बदला
ऱसम-ए-दुनिया की निभाने के लिए
हमसे रिश्तों की तिज़ारत ना हुई

दूर से था वो कई चेहरों में
पास से कोई भी वैसा ना लगा
बेवफ़ाई भी उसी का था चलन
फिर किसीसे ही श़िकायत ना हुई

व़क्त रूठा रहा बच्चे की तरह
राह में कोई खिलौना ना मिला
दोस्ती भी तो निभाई ना गई
दुश्मनी में भी अदावत ना हुई

- निदा फाड़ना.

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