Monday, October 9, 2017

ये है कैसा करवाचौथ…???
ये है कैसा करवाचौथ…???

पति के हाथों पिटती जाए…
कोख़ में अजन्मी मारी जाए…
फिर भी बेकार की उम्मीदों में…
नारी तू क्यू है मदहोश…???

बेमतलब है ये करवाचौथ…
ये है कैसा करवाचौथ..????

नारी अब ना कर तू करवाचौथ…
ये है कैसा करवाचौथ…???

नारी तुझे अपनीं बातें कहना है…
अब ना यूँ चुप रहना है…
छोड़ ढोना कुरीति-पाखण्ड…
अब ना कर तू कोई संकोच…।।

छोड़ दे दोहरे मापदंड का करवाचौथ…
ये है कैसा करवाचौथ…???

पंचशील पथ का जीवनसाथी हो…
नारी हो साथी के माथे का तिलक…
जो पंचशील की राह नहीं…तो…
किस बात का करवाचौथ…???

बंद करो यह करवा चौथ….
बोलो ! कैसा करवाचौथ…???
नहीं चाहिए खोखला करवाचौथ…।।

मेंहदी-चूड़ी-बिछुआ-कंगन के…
साज-श्रृंगार में…सजी हुई
ना गवां तू अपना जीवन…
साथी संग कर तू बुद्ध को नमन…।।

ऐसा सजीला हो करवाचौथ…
हाँ; ऐसा ही हो करवाचौथ…।।

माफ़ करना मेरे जीवनसाथी…
हैं हम-तुम दोनों “दीया-बाती”.
पर न करना तुम मेरे लिये…
अब तो कोई व्रत-प्रदोष…।।

छोड़ दो अब करवाचौथ…
मत करना तुम करवाचौथ…।।

अब समझो मेरे जीवनसाथी…
पथरीले रास्ते पर तेरे संग…
जीवन भर तेरे साथ चलूंगा..
धूप में ठंढी हवा बनूँगा …।।

पर;अब…मत करना…मत करना…
आडम्बरयुक्त ये करवाचौथ…।।

तेरे राहों के काँटों को…
अपनीं पलकों से चुन लूंगा…
पंचशील पथ पर तेरे संग चलूंगा…
मानवता की ख़ातिर मैं खुद को अर्पण कर दूँगा…।

पर;अब…मत करना…मत करना…
आडम्बरयुक्त ये करवाचौथ…।।

– रचनाकार उदय कुमार गौतम